बिहार की राजनीति एक बार फिर गरमा गई है। विधानसभा चुनाव से पहले सारण जिले में राजनीतिक पारा अचानक चढ़ गया है, जब दो मौजूदा विधायकों ने एक साथ अपनी-अपनी पार्टियों से इस्तीफा देकर नया सियासी ठिकाना तलाश लिया।
परसा के विधायक छोटेलाल राय ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) का साथ छोड़कर जनता दल (यूनाइटेड) का दामन थामा, वहीं बनियापुर के विधायक केदारनाथ सिंह ने भाजपा का हाथ थामकर सियासी हलकों में हलचल मचा दी।
🔹 दलबदल की पृष्ठभूमि: अंदरूनी असंतोष और टिकट की चिंता
सूत्रों के मुताबिक, राजद में लंबे समय से टिकट बंटवारे और नेतृत्व शैली को लेकर असंतोष पनप रहा था।
कई विधायकों को लगने लगा था कि आगामी विधानसभा चुनाव में उनका टिकट काटा जा सकता है।
छोटेलाल राय और केदारनाथ सिंह उन्हीं नेताओं में थे जो पिछले कुछ महीनों से पार्टी नेतृत्व से नाराज़ बताए जा रहे थे।
जदयू और भाजपा दोनों दलों ने उन्हें अपने पाले में लाकर न सिर्फ राजद को झटका दिया है, बल्कि स्थानीय स्तर पर अपने समीकरण भी मजबूत किए हैं।
🔹 चुनाव से पहले बढ़ी सियासी उठापटक
सारण जिले की राजनीति का हमेशा से राज्य की सत्ता संतुलन पर गहरा असर रहा है। ऐसे में दोनों विधायकों का दलबदल चुनावी हवा का शुरुआती संकेत माना जा रहा है।
जानकारों का कहना है कि यह सिर्फ शुरुआत है, आने वाले दिनों में कई और नेता भी अपने भविष्य को सुरक्षित करने के लिए नए विकल्प तलाश सकते हैं।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह घटनाक्रम “विचारधारा आधारित राजनीति” से हटकर “समीकरण और संभावनाओं की राजनीति” की ओर इशारा करता है।
🔹 जनता की राय: भरोसा या बेचैनी?
स्थानीय मतदाताओं में इस कदम को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रिया देखने को मिली।
कुछ लोगों का कहना है कि “अब नेता जनता के भरोसे से ज्यादा टिकट और पद के भरोसे राजनीति करते हैं,” जबकि कुछ इसे एक “व्यावहारिक फैसला” बताते हैं।
सारण जैसे इलाकों में जहां जातीय और स्थानीय समीकरण अहम भूमिका निभाते हैं, वहां इस तरह के कदम वोट पैटर्न को प्रभावित कर सकते हैं।
🔹 राजद पर बढ़ा दबाव, जदयू-भाजपा में उत्साह
राजद को जहां इस घटनाक्रम से झटका लगा है, वहीं जदयू और भाजपा के खेमों में उत्साह का माहौल है।
दोनों दल इसे अपने पक्ष में राजनीतिक हवा का संकेत मान रहे हैं।
वहीं, राजद अब अपने असंतुष्ट विधायकों को साधने में जुट गई है ताकि और टूट-फूट से बचा जा सके।
🔹 आगे की राह
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि सारण में हुए ये बदलाव सिर्फ दो सीटों तक सीमित नहीं रहेंगे।
आने वाले हफ्तों में जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आएंगे, दलबदल की गति और तेज़ हो सकती है।
बिहार की राजनीति में यह दौर “निष्ठा से ज़्यादा नतीजों की राजनीति” का प्रतीक बन गया है — जहां नेता विचारधारा नहीं, बल्कि जीत की गारंटी देखते हैं।






