देश का प्रधानमंत्री कौन है?
पूरे देश का प्रतिनिधि या पार्टी का फुल-टाइम ब्रांड एंबेसडर?
कभी लगता है, देश चलाने का काम तो बीच-बीच में होता है, बाकी समय हेलीकॉप्टर से मंच, मंच से माइक और माइक से कैमरा तक “माइक चेक 1,2,3…” चलता रहता है।
चुनाव आते ही, देश के प्रधानमंत्री “देश के सेवक” से सीधा “पार्टी प्रचारक” मोड में शिफ्ट हो जाते हैं। बस फिर क्या — हर सभा में वही लाइनें, वही जोश, और वही “कौन कहता है मोदी थक गया?” वाला अंदाज़।
अब भला कोई पूछे —
जब पूरा देश आपका ऑफिस है, तो क्या हर मंच आपका कैंपेन टूर बन गया है?
संविधान कहता है – आप PM हैं; जनता कहती है – आप तो इवेंट मैनेजर निकले!
भारत का संविधान साफ़ कहता है कि प्रधानमंत्री “देश के सभी नागरिकों का प्रतिनिधि” है, किसी एक पार्टी का नहीं।
लेकिन ग्राउंड पर देखा जाए तो प्रधानमंत्री जी हर रैली में ऐसे उतरते हैं जैसे कोई IPL कप्तान प्लेऑफ़ में फुल एनर्जी के साथ खेल रहा हो।
टीवी पर सुबह-शाम “प्रधानमंत्री जी की रैली”, “प्रधानमंत्री जी का रोड शो”, “प्रधानमंत्री जी का चुनावी भाषण” — ऐसा माहौल बन जाता है जैसे बाकी मंत्रियों का विभाग ही “प्रचार मंत्रालय” हो गया हो।
कानून तो नहीं रोकता, लेकिन मर्यादा जरूर झेंप जाती है
हाँ, ये बात सही है — संविधान में ऐसा कोई क्लॉज़ नहीं जो प्रधानमंत्री को चुनाव प्रचार से रोकता हो।
लेकिन भाई, कुछ चीज़ें कानून से नहीं, मर्यादा से तय होती हैं।
जब प्रधानमंत्री सरकारी संसाधनों से प्रचार नहीं करते, तो वो “कानूनी रूप से” सही हैं।
पर जब देश का सबसे ऊँचा पद किसी पार्टी के लिए प्रचार करता है, तो “नैतिक रूप से” सवाल उठता है —
क्या अब ‘प्रधानमंत्री कार्यालय’ का नाम बदलकर ‘प्रचार मंत्री कार्यालय’ रख दिया जाए? 😅
बाबू, जनता सब देख रही है
जनता अब समझदार है।
वो जानती है कि चुनावी मौसम में “विकास” छुट्टी पर चला जाता है और “जुमले” ओवरटाइम करते हैं।
हर चुनाव में वही “नया भारत”, वही “पुरानी सरकार निकम्मी” और वही “हम लाएंगे बदलाव” की प्लेलिस्ट।
कभी-कभी लगता है, अगर Netflix पर “Election Campaigns” नाम की कोई सीरीज़ बने, तो हर सीजन में लीड रोल वही रहेंगे — बस लोकेशन बदल जाएगी।
अब वक्त है — PMET लाने का! (Prime Minister Eligibility Test)
जब शिक्षक को पढ़ाने से पहले TET पास करना पड़ता है,
तो क्यों न नेता को देश चलाने से पहले PMET पास करना चाहिए?
टेस्ट में सवाल होंगे —
1️⃣ क्या आप प्रचार से ज्यादा प्रशासन में भरोसा रखते हैं?
2️⃣ क्या आप देश के सभी नागरिकों के प्रधानमंत्री हैं, या सिर्फ पार्टी के?
3️⃣ क्या आप कैमरे के बिना भी मीटिंग ले सकते हैं? 😆
निष्कर्ष (थोड़ा गंभीर, बाकी सब सच्चाई है)
प्रधानमंत्री किसी भी दल से हों — उनका काम है पूरे देश का नेतृत्व करना,
न कि पार्टी का चेहरा बन जाना।
जब वे हर मंच से एक ही दल की बात करते हैं, तो लोकतंत्र का संतुलन बिगड़ता है।
देश को जरूरत है ऐसे प्रधानमंत्री की जो चुनाव के बाद भी जनता से उतना ही संवाद करे जितना प्रचार के वक्त करता है।




