71वें नेशनल फिल्म अवॉर्ड्स की घोषणा के बाद से फिल्मी गलियारों में चर्चाओं का दौर तेज़ हो गया है। एक ओर जहां दर्शकों और क्रिटिक्स ने कई विजेताओं के चयन को सराहा, वहीं कुछ फैसलों ने पुराने विवादों और फेवरिटिज्म जैसे सवालों को भी फिर से हवा दे दी।
🎬 शाहरुख खान को ‘जवान’ के लिए अवॉर्ड — सही या सवालों के घेरे में?
शाहरुख खान को ‘जवान’ जैसी हाई-ऑक्टेन एक्शन फिल्म में उनके डुअल रोल और सामाजिक संदेश देने वाले किरदार के लिए नेशनल अवॉर्ड मिलना, उनके फैंस के लिए गर्व का पल रहा। फिल्म में उन्होंने एक जिम्मेदार सैनिक और एक सिस्टम से लड़ते आम आदमी का रोल निभाया था।

📣 दर्शकों की राय:
- समर्थक: “SRK ने ‘जवान’ में खुद को पूरी तरह से रीइन्वेंट किया। ये सिर्फ स्टार पावर नहीं, सच्चा अभिनय था।”
- आलोचक: “जवान मसाला फिल्म थी, इसमें दमदार एक्टिंग से ज्यादा स्टाइल था। क्या इससे बेहतर परफॉर्मेंस नहीं थीं?”
🎭 रानी मुखर्जी और विक्रांत मैसी की मौजूदगी पर चर्चा
- रानी मुखर्जी, जिन्होंने फिल्म ‘मिसेज चटर्जी वर्सेज नॉर्वे’ में एक जुझारू मां का भावनात्मक किरदार निभाया था, उनके नाम का न होना कई दर्शकों को खल गया।
- वहीं, विक्रांत मैसी, जिन्होंने ‘12वीं फेल’ में एक गरीब छात्र के संघर्ष को जीवंत किया, उनके लिए अवॉर्ड मिलना सर्वसम्मति से स्वागत योग्य कदम माना गया।
👥 सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं:
“विक्रांत मैसी का काम काबिल-ए-तारीफ था, उनका अवॉर्ड मिलना अभिनय की जीत है।”
“रानी मुखर्जी को नजरअंदाज करना दुखद है, उन्होंने करियर की बेस्ट परफॉर्मेंस दी थी।”
🏆 हिंदी फिल्मों का बोलबाला
इस साल के नेशनल अवॉर्ड्स में हिंदी फिल्मों की प्रमुख मौजूदगी को लेकर दर्शक बेहद खुश नजर आए। पिछले वर्षों में क्षेत्रीय सिनेमा की प्रधानता पर चर्चा होती थी, लेकिन इस बार शाहरुख, विक्रांत, तापसी, और नवाजुद्दीन जैसे कलाकारों की फिल्मों को सराहा गया।
📌 निष्कर्ष:
नेशनल अवॉर्ड्स हमेशा से बहस का विषय रहे हैं — खासकर तब जब मसाला और कमर्शियल फिल्मों को मंच मिलता है। लेकिन एक बात तय है, ‘जवान’ ने शाहरुख खान को एक नया आयाम दिया है और विक्रांत जैसे कलाकारों ने साबित किया है कि कंटेंट ही असली किंग है।
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