नई दिल्ली: देश की सर्वोच्च अदालत ने नाबालिगों की संपत्ति से जुड़े लेन-देन पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। कोर्ट ने साफ कहा है कि अगर माता-पिता या अभिभावक बिना अदालत की अनुमति के नाबालिग की संपत्ति बेचते हैं, तो बालिग होने के बाद वह सौदा मान्य नहीं होगा।
सबसे खास बात यह है कि इसके लिए किसी मुकदमे की ज़रूरत भी नहीं होगी। यानी, सिर्फ आचरण से अस्वीकृति भी कानूनी रूप से वैध मानी जाएगी।
⚖️ क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?
- नाबालिग के वयस्क होने पर उसे पूरा अधिकार है कि वह अपने अभिभावक द्वारा की गई बिक्री को अस्वीकार कर दे।
- यह अस्वीकृति दो तरीकों से हो सकती है:
- मुकदमा दायर करके
- या फिर अपने आचरण से, जैसे कि उसी संपत्ति को खुद बेच देना।
- हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम, 1956 की धारा 7 और 8 के तहत, बिना अदालत की अनुमति के नाबालिग की संपत्ति बेचना, गिरवी रखना या पट्टे पर देना अवैध है।
🏠 मामला क्या था?
- कर्नाटक के दावणगेरे जिले के शामनूर गांव में दो प्लॉट (संख्या 56 और 57) पर विवाद हुआ।
- रुद्रप्पा नामक व्यक्ति ने अपने तीन नाबालिग बेटों के नाम पर खरीदी गई ज़मीन को बिना अदालत की अनुमति के बेच दिया।
- बाद में जब बेटे बालिग हुए, तो उन्होंने वही ज़मीन किसी और को बेच दी।
- इस पर खरीदारों के बीच स्वामित्व को लेकर लंबा कानूनी विवाद चला, जो आखिरकार सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।
🔑 सुप्रीम कोर्ट का निष्कर्ष
- बिना अदालत की अनुमति के नाबालिग की संपत्ति का सौदा शून्यकरणीय (voidable) है।
- बालिग होने पर नाबालिग चाहे तो उस सौदे को नज़रअंदाज़ कर सकता है।
- इसके लिए मुकदमा दायर करना ज़रूरी नहीं, बल्कि व्यवहार से भी सौदा अस्वीकार किया जा सकता है।
👉 यह फैसला न सिर्फ नाबालिगों के अधिकारों को मज़बूती देता है, बल्कि अभिभावकों और खरीदारों दोनों के लिए एक बड़ा सबक भी है: नाबालिग की संपत्ति का लेन-देन अदालत की अनुमति के बिना करना कानूनी जोखिम उठाने जैसा है।






