शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) को लेकर देशभर में उबाल है। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश ने राज्यों की शिक्षा व्यवस्था को हिला कर रख दिया है। आदेश में कहा गया है कि दो वर्षों के भीतर TET उत्तीर्ण न करने वाले प्राथमिक शिक्षकों को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेनी होगी — अन्यथा सरकार उन्हें सेवामुक्त कर देगी। इस फैसले से हजारों शिक्षकों की नौकरी पर संकट मंडरा रहा है।
इसी आदेश के खिलाफ पांच राज्यों — उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, तेलंगाना, केरल और मेघालय ने सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटीशन दाखिल की है। राज्यों का कहना है कि यह आदेश उन शिक्षकों के साथ अन्याय है जो ‘निश्शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम, 2009’ लागू होने से पहले ही सेवा में आ चुके हैं। उनका तर्क है कि वर्षों से कार्यरत शिक्षकों को अब परीक्षा के आधार पर बाहर करना शिक्षा व्यवस्था को कमजोर करेगा।
हालांकि झारखंड सरकार ने अभी तक सुप्रीम कोर्ट में कोई रिव्यू पिटीशन दाखिल नहीं की है। राज्य सरकार ने संकेत दिया है कि वह कोर्ट के आदेश को लागू करेगी, लेकिन उससे पहले केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय और राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (NCTE) के दिशा-निर्देशों का इंतजार करेगी। फिलहाल मंत्रालय से इस बाबत कोई आधिकारिक निर्देश प्राप्त नहीं हुआ है।
इधर, सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से प्रभावित शिक्षकों के कई संगठन भी मैदान में उतर आए हैं। उन्होंने खुद भी शीर्ष अदालत में पुनर्विचार याचिकाएं दाखिल की हैं और केंद्र सरकार को चेताया है कि TET अनिवार्यता से जमीनी स्तर पर भारी असंतोष पैदा होगा।
दिल्ली में शिक्षकों का जुटान, रामलीला मैदान से जंतर-मंतर तक विरोध की गूंज
21 नवंबर को टीचर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के बैनर तले झारखंड समेत कई राज्यों के शिक्षक दिल्ली के रामलीला मैदान में विशाल धरना देंगे। वहीं, अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक संघ ने 24 नवंबर को जंतर-मंतर पर प्रदर्शन का ऐलान किया है।
झारखंड के सैकड़ों शिक्षकों ने दिल्ली जाने के लिए सामूहिक रूप से टिकटें भी बुक कर ली हैं। इनका कहना है कि यह आंदोलन उनकी नौकरी और सम्मान की रक्षा के लिए है।
दो साल की मोहलत, लेकिन संकट गहराता जा रहा है
सुप्रीम कोर्ट ने सभी प्राथमिक शिक्षकों को TET पास करने के लिए दो वर्ष का समय दिया है। जिनकी सेवा अवधि में पांच साल से अधिक शेष है और वे परीक्षा में सफल नहीं हो पाएंगे, उन्हें स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेनी होगी। आदेश का पालन न होने पर सरकार को ऐसे शिक्षकों को सेवामुक्त करना पड़ेगा।
साथ ही, भविष्य में प्रोन्नति (Promotion) भी तभी मिलेगी जब शिक्षक TET पास होंगे।
बताया जा रहा है कि झारखंड में करीब 30 हजार प्राथमिक शिक्षक इस आदेश से प्रभावित हो रहे हैं। शिक्षकों में असमंजस और रोष दोनों है। उनका कहना है कि सालों की सेवा के बाद अब परीक्षा की कसौटी पर खरा उतरना कई लोगों के लिए कठिन है।
सवाल यही — क्या तजुर्बे से बढ़कर एक परीक्षा का प्रमाणपत्र?
सवाल उठ रहा है कि क्या वर्षों से बच्चों को पढ़ा रहे अनुभवी शिक्षक सिर्फ एक परीक्षा न पास कर पाने की वजह से अयोग्य हो जाएंगे? राज्यों की दलील है कि शिक्षा का असली मूल्यांकन कक्षा में होता है, न कि उत्तर पुस्तिका में। अब देखना यह होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस रिव्यू पिटीशन पर क्या रुख अपनाता है — सुधार या सख्ती?




